Saturday, June 6, 2020

आर्थिक स्वनिर्भरता का विकल्प: समवाय

कोविड19 के बाद लॉकडाउन के परिणामस्वरूप भारत जैसे जटिल आर्थिक-सामाजिक संरचना वाले देश में किसान-मजदूर-स्त्री-युवा के सामने रोजगार का संकट है । विकल्प क्या है ? काम का विकल्प तो काम ही हो सकता है, चाहे वह काम पहले से उन्नीस हो या बीस । कम से कम जी सकने लायक आय तो होनी चाहिये । समवाय का मॉडल ऐसे में एक राह दिखाता है:


।।एक।।

एकला चलो का मंत्र देने वाले कवि रवींद्रनाथ ठाकुर सामाजिक जीवन में समवाय के सबसे बड़े हिमायती थे । समवाय वही जिसे हम बोलचाल की जुबान में सहकारिता के नाम से जानते हैं । आप ध्यान दें तो रवींद्रनाथ ठाकुर एकला चलो कहने से पूर्व डाक देने की बात कहते हैं । डाक यानी पुकार । पुकारना है उनको जो आपके आसपास हैं, आपके समाज के लोग हैं, आपके परिचित हैं । पुकार पर कोई पलट कर आपके पास आये यह मुमकिन है । कोई पास आये तो वह आपको सुनेगा । वह आपको सुनेगा तो मुमकिन है कि आपके साथ आये । किसी की पुकार सुनकर साथ आना ही समवाय है । पुकार सुनकर भी कोई न आये तब एकला चलो । अकेले सफर बहुत कठिन होता है । 
लॉक डाउन ने मनुष्य को अकेला कर दिया है । गरीब और मजदूर इसके सबसे बड़े शिकार रहे । काम छिन गये या छीन लिये गये । पूँजीवाद और उसके भूमंडलीकृत विश्व में और खासकर भारतीय संदर्भ में हैव-नॉट्स के सामने जीने का संकट आ गया है । विकल्प क्या है ? विकल्प है समवाय । यह अपने जैसे लोगों को डाक देने का समय है, पुकारने का सही समय यही है । समवाय एक विकल्प अर्थनीति है । आज समवाय ही विकल्प है ।
 
।।दो।।

समवाय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े आदमी के लिये आर्थिक स्वनिर्भरता के क्षेत्र में संभावनाओं के द्वार खोलता है । लेकिन यह आसान नहीं है । इसकी कुछ बुनियादी शर्तें हैं । यह कबीर के शब्दों में प्रेम की गली में समाने के लिये शीश उतार कर जाने की तरह है । यानी समर्पण । समवाय के लिये जातिगत और राजनैतिक पूर्वग्रहों से मुक्त हो जाना प्राथमिक रूप से अनिवार्य है । समूह में सोचने की शुरुआत यहाँ से होती है । 
अभी के हालात ऐसे हैं कि बड़ी संख्या में लोग बेकार हो गये हैं । वे क्या करें ? शून्य से कैसे शुरू करें । उदाहरण के लिये श्रमिक श्रेणी को ही लें । उनमें श्रम को उत्पादन में बदल देने की क्षमता तो है लेकिन वे अलग थलग हैंं । उन्हें अपनी सामूहिक शक्ति का आविष्कार करना है । उन्हें संगठित होना है । पहले ग्राम स्तर पर, फिर ब्लॉक स्तर पर, फिर जिला स्तर पर । शहर में हैंं तो उस स्तर पर भी । श्रमिकों का समवाय बनायें । हर राज्य में ऐसे समवाय के पंजीकरण और क्रेडिट लिंकेज के लिये सरकारी दफ्तर हैंं ब्लॉक से लेकर जिला और राज्य स्तर पर । और यह पंजीकरण नि:शुल्क है । इससे श्रमिक के पास बार्गेनिंग पावर आयेगा । बिचौलिया कोई ठेकेदार नहीं होगा । काम मिलेगा क्योंकि श्रम का कोई विकल्प नहीं । टेंडर प्रक्रिया में भी भागीदारी सुनिश्चित होती है समवाय के माध्यम से ।
श्रमिकों का समवाय श्रम के शोषण से मुक्ति का मंत्र है । 

।।तीन।।

साहित्यिकों में समवाय को लेकर व्यापक दृष्टि कवि रवींद्रनाथ ठाकुर की रही । रवींद्रनाथ ने पतिसर में इसी आदर्श पर एक बैंक की नींव डाली । नोबेल पुरस्कार के पैसों को कवि ने इसी बैंक को दे दिया । गरीब किसान को इस बैंक से न्यूनतम व्याजदर पर ऋण दिया जाता था । पतिसर में महाजनी व्यवस्था इस एकल प्रयास के आगे कमजोर पड़ गई थी । एक व्यक्तिगत प्रयास के रूप में यह घटना विरल और दृष्टांतमूलक है । 
कृषि क्षेत्र में समवाय एक विशाल संभावना है जिसके सफल मॉडल केरल, महाराष्ट्र, हरियाणा सहित पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में देखे जा सकते हैं । इस समवाय में छोटे और भूमिहीन किसान शामिल हो सकते हैं । अर्थनीति के क्षेत्र के बड़े बड़े शॉक को एबज़ॉर्ब करने की क्षमता है समवाय में । इसका जाल ग्राम पंचायत स्तर पर है । यह माइक्रो फाइनेंस का ऐसा सेक्टर है जहाँ से किसान को बीज, खाद, कीटनाशक के साथ फसल के लिये महज 4% व्याजदर पर (ऋण की दर 7% जिसमें से 3% समय पर ऋण परिशोध करने पर वापस लौटा दिया जाता है) ऋण मिल जाता है और जहाँ वह अपनी फसल को बेच भी लेता है । संस्था का मालिक भी किसान ही होता है । ग्लोबल इकोनॉमी की कठिन चुनौतियों के सामने कृषि क्षेत्र में समवाय व्यवस्था अनंत संभावनाओं से भरी है ।

।।चार।।

स्त्रियों का, स्त्रियों के लिये, स्त्रियों के द्वारा परिचालित आर्थिक संस्थान समवाय क्षेत्र में ही संभव है । इसके मोटे तौर पर दो स्वरूप हैं । एक तो छोटा समूह जिसमें दस की संख्या में शुरुआत हो सकती है । वे समूह में काम करती हैं, समूह में संचय करती हैं और प्रयोजन के अनुसार समूह के संचित धन से अपने ही सदस्य की सहायता करती हैं । यह सेल्फ हेल्प ग्रुप मॉडल है । इसके लिये क्रेडिट लिंकेज की सुविधा उपलब्ध होती है । बांग्लादेश के मुहम्मद यूनुस साहब को इसी मॉडल के सफल प्रयोग के लिये नोबेल से नवाजा गया । बड़े स्तर पर हजारों स्त्रियों के सामूहिक प्रयास से क्रेडिट बैंक की स्थापना की जा सकती है जिसकी सदस्यता सिर्फ स्त्रियों के लिये होती है । यह वीमेंस क्रेडिट बैंक है । इस बैंक की डाइरेक्टर्स स्त्रियाँ ही होती हैं । 
आर्थिक स्वनिर्भरता की दिशा में महानगरों में स्त्रियों के लिये अवसर फिर भी होते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की स्त्रियों के लिये कहीं कोई अवसर सुलभ नहीं होते या होते भी हैं तो शोषण का शिकार उन्हें होना पड़ता है । यदि वे सेल्फ हैल्प ग्रुप के मॉडल पर काम करें तो इससे बेहतर कुछ नहीं । उदाहरण के लिये एक ग्रुप यदि कुछ महीनों (इसकी कोई समय सीमा नहीं है) के संचय से पाँच हजार रुपए जमा कर पाता है तो इसकी चारगुनी रकम यानी बीस हजार रुपए उन्हें बैंक देगा । इसके लिये कोई गारंटी नहीं देनी होती । यह मॉडल ट्रस्ट यानी भरोसे पर काम करता है । इस रकम से ग्रुप का कोई एक सदस्य छोटे स्तर पर व्यवसायिक काम कर सकता है । अदायगी की जिम्मेदारी ग्रुप के दसों सदस्यों पर होती है । सुचारु रूप से काम करें तो बारी बारी से ग्रुप का हर सदस्य स्वनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा सकता है । 
समवाय ईमानदार लोगों के लिये है । गुजरात का अमूल समवाय का ही एक परिचित नाम है । 

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