Saturday, January 3, 2015

अक्षर घाट - 34

 
अपने दूसरे कविता-संग्रह के लिए उपयुक्त आवरण-चित्र की तलाश में था मैं कि इसी दरम्यान कुँवर रवीन्द्र जी से बात हुई । अपनी कविता (यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है) पर मैंने उनसे कोई उपयोगी चित्र देने का आग्रह किया । मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब अगले कुछ दिनों में ही कुँवर रवीन्द्र ने तीन अलग-अलग आवरण चित्र पूरी तरह तैयार करके मुझे मेल किया । और  उन चित्रों में से एक अंततः किताब का आवरण-चित्र बना । किताब कलकत्ता के जयश्री प्रेस से छपी जहाँ बांग्ला की बेहतरीन पुस्तकें छपा करती हैं । वहाँ जिन लोगों ने भी किताब का आवरण चित्र छपाई के दौरान देखा उन्होने इस बात को बार-बार दोहराया कि चित्र परिपक्व हाथों से बना है (पाका हाथेर काज कह रहे थे वे बांग्ला में) । कुँवर रवीन्द्र जब तब किसी कविता पोस्टर से चौंका देते हैं । 
चित्रकार और कवि कुँवर रवीन्द्र से पहला परिचय सोशल मीडिया पर उनके चित्रों के माध्यम से ही हुआ था । कोई तीन-चार साल पहले की बात होगी । जब तब कोई बहुत खूबसूरत सा कविता-पोस्टर देखकर नजरें ठिठक जाया करती थीं । मेरी पहली किताब आ चुकी थी और मित्रों के दबाव के कारण फेसबुक पर मैंने खाता बना लिया था । कुँवर रवीन्द्र के बनाए पुस्तकों के आवरण-चित्र और कविता-पोस्टर इस माध्यम पर अपनी जबरदस्त पहचान बना चुके थे । साहित्यिक पत्रिकाओं में कुँवर रवीन्द्र के रेखा-चित्र अक्सर दिख जाते थे । मैं बहुत हैरत से देखा करता था कि यह आदमी कैसे रंगों में इतना काव्यात्मक संतुलन कायम कर लेता है । कई बार ऐसा भी लगा कि इन कविता-पोस्टरों में रंग-संयोजन और चित्रों में गूँथी गई आकृतियों ने कविताओं को अर्थवान बना दिया है । दिल पर हाथ रख कर कहना कठिन है कि उन चित्रों को देखकर किसी कवि को ईर्ष्या न होगी । एक दिन आश्चर्य हुआ जब देखा कि कुँवर रवीन्द्र जी ने मेरी एक कविता पर पोस्टर बना कर भेजा है । कुँवर रवीन्द्र अपना प्रेम मित्रों के बीच इसी तरह लुटाते रहते हैं । और यह बिलकुल निःस्वार्थ भाव से किया गया उनका प्रेम होता है । एक बातचीत में मालूम हुआ कि वे दिन के चौबीस घंटों में सिर्फ चार घंटे सोते हैं । नौकरी से जो समय बचाता है उसका अधिकांश कला को ही समर्पित है । वे चाहते तो लाखों कमा सकते थे अपनी इस काला के जरिये । यह  लाखों की  मेहनत उन्होने दोस्तों के बीच लुटा दी । आज देखता हूँ कि हर दूसरी किताब पर कुँवर रवीन्द्र का बनाया आवरण चित्र है । खुशी होती है । कई बार यह महसूस किया कि ऐसे समर्पित कलाकार पर विधिवत लिखा जाना चाहिए । यह संतोष कि बात है कि भाई निरंजन श्रोत्रिय के सम्पादन में निकलने वाली पत्रिका समावर्तन ने अपना एक अंक कुँवर रवीन्द्र पर एकाग्र करते हुए प्रकाशित किया है । एक कविता शब्दों से रंगों में बदल जाती है जब यह चित्रकार अपनी कल्पना से इन्हें आकार देता है । कहना चाहिए कि चित्रकार रंगों की भाषा में कविता लिखता है । के. रवीन्द्र के चित्रों को देख कर कोई भी इस कथन को अपवाद स्वरूप नहीं लेगा । एक गर्व करने लायक मित्रता के इन वर्षों में मैंने कुँवर रवीन्द्र के बनाए बहुतेरे चित्र देखे । लगभग तीन-चार वर्षों में इनके आँके असंख्य चित्रों को देखने का अवसर  मिला । 
के. रवीन्द्र के नाम से सत्रह हजार से भी अधिक पुस्तकों के आवरण-चित्रों पर अपना हस्ताक्षर दर्ज़ करने वाले शख़्स कुँवर रवीन्द्र  का जन्म 15 जून 1957 को रीवा, मध्य प्रदेश में हुआ । फिर युवावस्था तक का इनका जीवन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में बीता ।  यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिवालय में कार्यरत कुँवर रवीन्द्र के चित्रों की अब तक कई प्रदर्शनियाँ आयोजित हो चुकी है । सृजनसम्मानमध्यप्रदेश-1995 तथा कलारत्नबिहार-1997 जैसे सम्मान कुँवर रवीन्द्र को अपनी कला साधना के लिए हासिल हैं । हिन्दी की शायद ही कोई साहित्य-कला की पत्रिका हो जिसके लिए कुँवर रवीन्द्र ने चित्र न बनाए हों । हिंदी के अलावा अंग्रेजी, फिलिपिनो टर्किस मराठीबंगाली ,नेपाली व पंजाबी पुस्तकों / पत्रिकाओं के लिए भी उन्होने रेखाचित्र व आवरण-चित्र बनाए हैं । 
 
रंगों और आकृतियों का एक नया संसार रचते हैं कुँवर रवीन्द्र । नीला हो या हरा या पीला अथवा कत्थई रंगों का सम्मिश्रण उनके चित्रों में एक अद्भुत धूप-छाँव वाला प्रभाव पैदा करता है । रेखाएँ बोलने बतियाने लगती हैं । अधिकतर ये चित्र मूर्त होते हैं ; लेकिन अमूर्त के चित्रकार भी हैं कुँवर रवीन्द्र । मुझे लगता है कि नीला उनका प्रिय रंग होना चाहिए । उनके बनाए बहुत से चित्रों में नीला रंग देखने को मिलता है । कैनवास पर चित्र की पृष्ठभूमि में एक पतली सी चिड़िया , जो कई बार पत्ती होने का भ्रम पैदा करती है , उनके सिगनेचर मार्क की तरह देखी जा सकती है । उनकी आकृतियाँ ठोस होती हैं । इन आकृतियों की ज्यामिती देखने लायक होती है और उसका अर्थपूर्ण संयोजन आपको विस्मय से भर देता है ।  
 
कुँवर रवीन्द्र की संरचना के पीछे गहरी दृष्टि होती है । कवियों लेखकों के बनाए रेखाचित्र तो ऐसे होते हैं कि जैसे वही व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ हो । कुँवर रवीन्द्र एक मंजे हुए कलाकार हैं । इस बात की गवाह हैं उनकी कलाकृतियाँ । इसका एक कारण तो यह कि वे स्वभाव से कवि हैं । उनकी कविताएं भी यत्र-तत्र प्रकाशित होती रही हैं । 
 
अच्छे दोस्त नसीब वालों को ही मिलते हैं । हम खुशकिस्मत हैं कि केरवीन्द्र हमारे दोस्त हैं । इस शख़्स के पास दोस्तों के लिए इतना वक़्त है जितना इस दौर में बाप-बेटे और भाई-भाई के पास भी एक-दूसरे के लिए बड़ी मुश्किल से निकल पाता है । दिन में बीस घंटे काम करने वाला यह चित्रकार कला और साहित्य के प्रति इस कदर समर्पित हैयह एक उदाहरण है हमारे बीच । आज दस में से आठ कविता संग्रहों के आवरण इसी चित्रकार की कूची से तैयार हो रहे हैं । वह भी बिना किसी विनिमय के । यह स्वभाव दुर्लभ है । विरल होता है ऐसा व्यक्तित्व । 
 

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