Sunday, August 23, 2015

अक्षर घाट - 43


एक अच्छी कविता अच्छे संगीत की तरह होती है | और अच्छा संगीत वह होता है जो सीधे हमारी आत्मा से जुड़ कर हमारे भीतर एक नाद की सृष्टि करता है | कहा भी जाता है - पोएट्री इज़ नॉट फ़ॉर अनम्यूज़िकल इयर्स | कविता में जीवन का संगीत होता है | जीवन का संगीत सुन सकने वाले कानों के लिए कविता सबसे सुन्दर उपहार है | जीवन का संगीत कहीं भी बिखरा होता है | वह राज प्रासादों में कैद नहीं होता | वह गरीब की झोपड़ी में भी उतनी ही निस्संगता में बहता रहता है | अभागे होते हैं वे कान जिन तक इस संगीत की धमक नहीं पहुँचती | जीवन का यह संगीत धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले काश्मीर में भी उसी तरह बजता है जिस तरह झाबुआ के निविड़ इलाके में | हिन्दी का एक कवि झाबुआ में जीवन का यह संगीत सुनता है और लिखता है - कितनी घासों से मिला / कितनी माँओं से | घास के भीतर मातृत्व को देख पाने वाली दृष्टि को मैं सलाम करता हूँ | घास बहुत से लोगों के लिए जीवन का आधार है | घासें कई बार पूरे पर्यावरण को अपने नाजुक कन्धों पर थामे हुए खड़ी होती हैं | आप पूछ सकते हैं कि कैसे | घास प्रकारांतर से मानव आहार भी बनती है जहाँ कहीं दूसरे उपयोगी अन्न की पैदावार नहीं है अथवा कम है | मवेशियों के लिए तो वह जीवन का संबल है ही | और मवेशी परोक्ष रूप से मनुष्य के जीवन का संबल हैं | जीवन को संबल और आधार देने वाली घासें माँ की तरह दिखती हैं | यह मनुष्य और प्रकृति की वह सहज अवस्था है जहाँ जीवन का सितार बजता है | आप देखें कि यह बात कवि एक ऐसे समय में कह रहा है जबकि प्रकृति के अधिकाधिक दोहन से पैसे कमाने की लिप्सा ने मनुष्य को अंधा बना दिया है | प्रकृति उसके लिए मुनाफ़ा कमाने की मशीनरी है | ऐसे में कवि का यह कहना कि घासों से मिलना दरअसल माँओं से मिलना है हमारे भीतर के मनुष्य को झकझोरने वाली बात है | कवि झाबुआ में सिर्फ घासें ही नहीं देखता | वह आगे कहता है - कितने फूलों से मिला / कितने शिशुओं से | फूलों का शिशुओं में बदल जाना कवि की गहन जीवन दृष्टि से ही संभव है | इस एक पंक्ति में न जाने कितने निर्दोष बचपन की खिलखिलाहटें दर्ज़ हैं | शैशव फूल ही तो हैं | इनका लालन पालन जरूरी है | ये भविष्य के बड़े बड़े वृक्ष हैं | इनसे ही फल बनेंगे | इनसे ही नए बीज तैयार होंगे | जीवन का चितेरा कवि आगे कहता है - कितनी खुशबुओं से मिला / कितनी कितनी वधुओं से | आप सहज ही अनुभव कर सकते हैं कि वधुएँ जहाँ खुशबू की तरह आती हैं वह जीवन कितना संगीतमय होगा | खुशबुएँ जीवन को तरोताजा कर जाती हैं | वे मन के ठहराव को तोड़ती हुई आती हैं और जीवन संगीत का झरना कलकल बहने लगता है | खुशबुओं को मनुष्य बहुत सहेज कर रखता आया है | खुशबुएँ मूल्यवान हैं | उनसे जीवन सँवरता है | झाबुआ में कवि इतना ही नहीं देखता | वह जीवन की कई और बेहतरीन छवियाँ लेकर आता है | वह कहता है - कितनी बूटियों से मिला / कितनी बेटियों से | अद्भुत छवि है यह कविता में | बूटियों की तरह बेटियाँ | जीवन के क्लेश हर लेने वाली | जीवन की औषधियाँ हैं बेटियाँ | मुझे नहीं लगता बेटियों को इस दृष्टि से कविता में पहले देखा गया है | झाबुआ में यह कवि जलाशयों से मिलता है तो भाइयों को याद करता है | भाई जो जीवन के संघर्षों में बराबर डट कर खड़ा होता है | जो जीवन की हर छोटी बड़ी लड़ाई में मोर्चे पर साथ खड़ा होता है | झाबुआ में प्रकृति और मनुष्य के इन ख़ूबसूरत रिश्तों को निहारने वाला यह कवि है प्रभात | इधर प्रभात की कविताओं ने हिन्दी के समकालीन कविता परिदृश्य में एक सार्थक हस्तक्षेप किया है | उनकी यह कविता है -झाबुआ में | वागर्थ के दिसंबर 2014 अंक में छपी है | झाबुआ मध्यप्रदेश का वह सीमान्त है जो गुजरात और राजस्थान से सटा हुआ है | प्रभात वहाँ की घासों , वहाँ के फूलों , वहाँ की खुशबुओं , वहाँ की बूटियों और वहाँ के जलाशयों से मिलते हैं तो माँओं , शिशुओं , वधुओं , बेटियों और भाइयों को याद करते हैं | जीवन का जो संगीत प्रभात झाबुआ में सुनते हैं और जिसे कविता में दर्ज़ करते हैं वह जीवन का सहज संगीत है - कर्णप्रिय और मधुर | उसमें वाद्यों का भारी शोर नहीं है | यह जीवन की सहज अवस्था है | कविता आगे बढ़ती है तो कवि इस सहज अवस्था बारे में भी बताता है जहाँ कोई यह नहीं कहता - हम ये करते हैं , हम वो करते हैं , हम ये हैं , हम वो हैं | यह एक ऐसी जगह है जीवन के भूगोल में जहाँ - सब अपने काम में लगे हैं , जीवन को सजा रहे हैं , जीवन में सजे हैं | यह एक ऐसा जीवन क्षेत्र है जहाँ लोग श्रम से थके थे , इंसान होने से नहीं थके थे | श्रम से थके इंसानों के भाल पर पसीने की बूँदों की ओस है जिसे निहार कर कवि लौटा है झाबुआ से | कविता में झाबुआ जीवन का सहज संगीत बनकर आता है | जहाँ कोई शोर नहीं है | इस संगीत के श्रवण के लिए किसी संगीत अकादमी की डिग्री नहीं बल्कि जीवन दृष्टि चाहिए | कविता के बारे में ऐसी कविताएँ हमें आश्वस्त करती है कि वह डीजे का कानफोडू संगीत नहीं है | यहाँ कोई एम्प्लीफायर नहीं है | यह धीमे धीमे बजता संगीत है | साँस रोककर . काम रोपकर इसे सुनने की जरूरत है | चमत्कार पैदा करनेवाली , घुमावदार मुहावरों के शब्दजाल में पाठकों को भरमाती चालू कविताओं के बरक्स ऐसी सहज कविताओं को ठहर कर देखे जाने की जरूरत है | अच्छी कविताओं का एक जरूरी एजेंडा अपने पाठकों का संस्कार करना भी है | वह अपने पाठकों के कानों को अनम्यूज़िकल से म्यूज़िकल बना सकती है अगर उसमें सच्चाई है |

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